श्री राम चंद्र कृपालु भजमन Shri Ram Chandra Kripalu By Rakesh Kala-Bhaktilok

Deepak Kumar Bind

 

श्री राम चंद्र कृपालु भजमन Shri Ram Chandra Kripalu By Rakesh Kala-Bhaktilok


श्री राम चंद्र कृपालु भजमन Shri Ram Chandra Kripalu By Rakesh Kala-Bhaktilok


श्री रामचन्द्र कृपालु भजमन हरण भवभय दारुणं ।

नव कञ्ज लोचन कञ्ज मुख कर कञ्ज पद कञ्जारुणं ॥१॥

कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं ।

पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ॥२॥

भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं ।

रघुनन्द आनन्द कन्द कोसल​ चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥

सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदार अङ्ग विभूषणं ।

आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं ।

मम हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं ॥५॥

मनु जाहि राचेयु मिलहि सो वरु सहज सुन्दर सांवरो ।

करुणा निधान सुजान शीलु स्नेह जानत रावरो ॥६॥

एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली।

तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥



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