काहे गरजे गरज डरावे हनुमानजी का भजन

Deepak Kumar Bind

काहे गरजे गरज डरावे हनुमानजी का भजन 


काहे गरजे गरज डरावे
काहे गरजे गरज डरावे
बिन बात के आंख दिखावे
बिन बात के आंख दिखावे
काहे गरजे गरज डरावे
बिन बात के आंख दिखावे
जाने भी दे जाने दे
उस पार ओ सागर
मैं रामदूत हनूमाना
मैं राम दूत हनुमाना
मुझको गढ़ लंका है जाना
माता सिया की पाने खबर सार
औ सागर..
जाने भी दे जाने दे
उस पार ओ सागर
काहे गरजे गरज डरावे.....

रावण दुराचारी मात का
ले गया करके हरण
और दंड देना चाहिए
जो ऐसा करें आचरण
वह भी अपराधी है
ऐसे आदमी को जो दे शरण
वह भी अपराधी है
ऐसे आदमी को जो दे शरण
चिंता में है राम रघुनंदन
चिंता में है नाम रघुनंदन
दुखों से घिरे दुख भंजन
ऐसे में मुझसे
ना कर तकरार सागर
जाने दे जाने दे
उस पार ओ सागर
काहे गरजे गरज डरा वे.....

हे पूज्य आप विद्वान
ब्राह्मण को बड़प्पन चाहिए
श्री राम की सेवा में
थोड़ा हाथ आप बटाइए
दीजिए मुझे रास्ता
कुछ रास्ता बतलाइए
दीजिए मुझे रास्ता
कुछ रास्ता बतलाइए
अगर तू जिद पे अपनी अड़ेगा
अगर तू जिद पे अपनी अड़ेगा
फिर कुछ मुझको करना पड़ेगा
जैसे चाहोगे वैसे मैं तैयार हूं
ओ सागर...
जाने दे जाने दे
उस पार ओ सागर
काहे गरजे गरज डरा वे.....

राम जी के काज हित
मैं  तो कुछ भी कर जाऊंगा
अंजुली में भर तुझे
एक घूंट में पी जाऊंगा
अंजनी का लाल हूं
नहीं दूध को लजाऊंगा
ओ ‘लक्खा’ मान ले विनती मेरी
औ लक्खा मान ले विनती मेरी
मुझको बहुत हो रही देरी
करदे सरल इतना सा उपकार सागर
जाने दे जाने दे
उस पार ओ सागर
काहे गरजे गरज डरा वे.....

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