मोहिनी अवतार भजन इन हिंदी लिरिक्स
महर्षि संदीपनि ने श्री कृष्ण और बलराम को अस्त्र शस्त्रकी शिक्षा और चारों वेदों का ज्ञान दिया। उन्होंने दोनों भाइयों को संगीतका भी ज्ञान प्रदान किया। महर्षि संदीपनि श्री कृष्ण और बलराम कोहरिणयाक्ष और हिरण्यकश्यप की कहनी सुनते हैं जिनके कारण विष्णुभगवान को वाराह अवतार लिया था। जब वाराह अवतार में भगवानविष्णु हरिणयाक्ष को मार देते हैं तो हरिणयाक्ष का भाई हिरण्यकश्यपक्रोधित हो पृथ्वी के सभी विष्णु भक्तों पर हमला कर देते है और उन्हेंमारने लगता है और सिर्फ़ अपनी पूजा करने के लिए बोलता है।हिरण्यकश्यप अपने गुरु के पास जाता है और उनसे देवताओं से युद्धकरने के लिए शक्ति पाने का रास्ता पूछता है तो उसे उसका गुरु तपस्याकरने की आज्ञा देता है। हिरण्यकश्यप ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करता हैऔर ब्रह्मा जी उससे प्रसन्न होकर उसे वरदान देते हैं। हिरण्यकश्यप ब्रह्माजी से वरदान के रूप में वरदान माँगता है की उसे ना कोई मनुष्य ना पशुना राक्षस मार सके, ना दिन में ना रात में मार सके, ना ही घर के अंदर नाही घर के बाहर, ना ही अस्त्र से और ना ही शास्त्र से मार सके। ब्रह्मा जीउसे वरदान दे देते हैं। हिरण्यकश्यप स्वर्ग पर हमला कर क़ब्ज़ा कर लेताहै, वह सभी पृथ्वी वसियों को और साधु संतो को खुद को भगवान माननेके लिए प्रताड़ित करने लगा। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रलहाद ही एक ऐसाथा जो विष्णु भगत था और 5 वर्ष की आयु से ही विष्णु भगवान की पूजामें लीन हो गया था जब हिरण्यकश्यप को पता चला तो उसने उसे बहुतसमझाया पर जब वह उसे नहीं समझा पाया तो उसने उसे दंडित करनाचाहा परंतु विष्णु भगवान उसकी रक्षा करते थे। जब हिरण्यकश्यपप्रलहाद को मारने में असमर्थ हो रहा था तो उसकी बहन होलिकाहिरण्यकश्यप को प्रलहाद के साथ आग में बैठने की योजना बताती हैक्योंकि वह अग्नि से जल नहीं सकती थी क्योंकि ब्रह्मा जी का वरदानथा। लेकिन विष्णु भगवान का नाम जपते हुए प्रलहाद को अग्नि कुछनहीं करती लेकिन होलकी जलकर ख़ाक हो जाती है। जब हिरण्यकश्यपप्रलहाद को अपने भगवान को बुलाने के लिए कहता है तो विष्णु भगवानमहल के स्तम्भ में से नरसिंह अवतार ले प्रकट हो जाते हैं औरहिरण्यकश्यप को महल के चौखट पर ले जाते हैं और उन्हें अपने नाखूनोंसे मार देते हैं। नरसिंह भगवान प्रलहाद को प्रेम सहित अपने पास बैठाकर उसे प्रेम करते हैं। ऋषि संदीपनि श्री कृष्ण और बलराम को विष्णुभगवान के मत्स्य रूप की कहनी भी सुनते हैं। ऋषि संदीपनि श्री कृष्णको राजा सत्यव्रत के अहंकार की कहनी सुनाते हैं। राजा सत्यव्रत एकबार नदी में स्नान करते हुए सूर्य देव को अर्ग दे रहे थे तो एक मत्स्यउनकी हाथ में भरे जल में आ जाती है, वह मत्स्य राजा से विनती करतीहै की उसे नदी में दूसरी बड़ी मछलियों से ख़तरा है, तो राजा उसे अपनेसाथ अपने महल ले जाता है। जब वह उसे एक सोने के बर्तन में छोड़करजाता है तो वह बड़ी होती जाती है राजा जैसे जैसे उसके लिए बड़े से बड़ेपात्र का प्रबंध करता है तो मत्स्य और बड़ी हो जाती है। राजा को अपनीगलती का अहसास हो जाता है तो वह उस मत्स्य को विशाल नदी मेंछोड़ कर आते हैं, जहां उन्हें विष्णु भगवान दर्शन देते हैं। भगवान विष्णुके इस अवतार को मत्स्य अवतार कहा जाता है। विष्णु भगवान राजासत्यव्रत को प्रलय के बाद मनु बनकर पृथ्वी पर जीवन का पुनः निर्माणकरने का रास्ता बताते हैं। ऋषि संदीपनि श्री कृष्ण और बलराम को समुद्रमंथन की कहनी भी सुनते हैं। समुद्र मंथन से निकले अमृत को भगवानविष्णु मोहिनी रूप में सभी देवताओं और असुरों में बराबर बाटने के लिएआते हैं। अमृत बाँटते वात मोहिनी अवतार में विष्णु जी सिर्फ़ देवताओं को अमृत पिला रहे थे तो एक राक्षस देवता का रूप धर अमृत पीने के लिए बैठ जाता है। जिसे चंद्र देव देख लेते हैं और मोहिनी को बता देते हैं। विष्णु जी क्रोधित हो कर मोहिनी रूप से विष्णु रूप में आकर अपने सुदर्शन चक्र से उस राक्षस का वध कर देते हैं।
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